Saturday, December 20, 2014

PK - A very good film but…





आमिर खान और राजकुमार हिरानी आज के हिन्दुस्तानी सिनेमा के ऐसे नाम हैं कि इनकी हर फिल्म का बेसब्री इंतज़ार रहता है और जब इस जोड़ी ने पिछली फिल्म "3 इडियट्स " दी हो तो फिर कहना ही क्या ? तो बाकी सिनेमा प्रेमी जैसे मैंने भी आज फर्स्ट डे फर्स्ट शो इस जोड़ी की नवीनतम पेशकश "PK" देख डाली । यहां ये बताना लाज़मी है कि ये फिल्म अब तक की सबसे बड़ी रिलीज़ मानी गयी है । पूरे विश्व में ये फिल्म कुल 6000 प्रिंट पे रिलीज़ की जा रही है | मतलब कम से कम इस फिल्म को 6000 थियेटर में साथ रिलीज़ किया जा रहा है । ये एक छोटी मोटी हॉलीवुड फिल्म के जैसी रिलीज़ है जो कि आमिर - राजकुमार जोड़ी के लिए नि:संदेह वाजिब है ।

अब तक आप सभी ने इस फिल्म के विभिन्न रिव्यू पढ़ लिए होंगे और जान ही चुके होंगे कि "PK" को सबने बेहतरीन फिल्म मान लिया है लिया है । फिर भी अगर किसी ने वह रिव्यू न पढ़ा हो तो कृपया नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें :

http://www.bollywoodhungama.com/moviemicro/criticreview/id/558557

http://www.rediff.com/movies/review/review-pk-is-a-triumph-and-aamir-soars-high/20141219.htm

http://www.rediff.com/movies/review/review-pk-is-a-mixed-bag-of-spunk-and-sentimentality/20141219.htm

उपरोक्त से आपको इस फिल्म के बारे में समस्त जानकारी मिल ही गयी होगी । इसलिए मैं यहां वही जानकारी देकर समय जाया नहीं करूंगा । अपितु मैं उन पहलुओं को छूने की कोशिश करता हूँ जो इनमें नहीं दिए गए हैं ।

सबसे पहले गौर करें राजकुमार हिरानी की फिल्मों के टेम्प्लेट पर । मैं मानता हूँ वे ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित "आनंद" फिल्म के शायद सबसे बड़े प्रशंसक हैं और उसी फिल्म से अपनी हर फिल्म की प्रेरणा लेते हैं । याद करें कि "आनंद" क्या कहानी थी, एक मलंग सा व्यक्ति कहीं से कुछ लोगों की ज़िन्दगी में अचानक से आ जाता है और उन लोगों की निहायत उदास, मशीनी और उबाऊ ज़िंदगी को बदल डालता है । दूसरे शब्दों में वो उन लोगों को जीना सीखा देता है । यही बात राजकुमार हिरानी की हर फिल्म में रही है । "मुन्नाभाई एम बी बी एस " में एक गुंडा एक हस्पताल में पहुंच जाता है और वह वहां डाक्टरों को इंसान बन कर इलाज़ करना सीखा देता है । "लगे रहो मुन्नाभाई " में महात्मा गांधी मुन्ना के द्वारा पुन: जनमानस में जाते हैं और पूरे समाज को बदल देते हैं । "3 इडियट्स" में एक मलंग छात्र रेंचो इंजीनियरिंग कालेज में पहुंच जाता है और अपने दोनों दोस्त और कालेज के प्रिंसिपल की ज़िंदगी ताउम्र लिए बदल देता है ।

मैं ये बता कर राजकुमार हिरानी उनके सह लेखक अभिजात जोशी की निंदा नहीं हूँ बल्कि उनके लेखन कौशल की तारीफ़ कर रहा हूँ । एक ही परिस्थिति पर लगातार ३ अलग अलग कहानी कहना वो भी एक से बढ़कर एक, ये सामान्य बात नहीं है ।
Hrishikesh Mukherjee
बतौर निर्देशक राजकुमार हिरानी पुन: ऋषिकेश मुकर्जी के ही छात्र हैं । अपने गुरु की तरह उनकी फिल्मों में भी एक सरलता और सहजता होती है । उनकी फिल्मों में तकनीक कभी भी कहानी पर हावी नहीं होती है । आप कभी भी इन फिल्मों के तकनीकी पक्ष जैसे छायांकन, सेट डिज़ाइन, कॉस्ट्यूम, पार्श्व संगीत, साउंड डिज़ाइन आदि पर ध्यान नहीं दे पाएंगे । आप केवल और केवल कहानी में डूबे रहेंगे जो कि चरित्रों द्वारा आपके सामने पेश हो रही है । यहां तक कि इन फिल्मों में स्टार अभिनेता भी वही चरित्र लगते हैं जो कि वे निभा रहे हैं । हमको कभी महसूस नहीं होता है कि ये चरित्र इस अभिनेता कोई और भी निभा सकता था । इसके लिये राजकुमार और उनकी  समूची टीम काबिल-ए-तारीफ है ।

मेरा मानना है कि "3 इडियट्स" पिछले १० सालों बड़ी हिट फिल्म है । कहने वाले कह सकते हैं कि इसके बाद कितनी फिल्म आयीं जैसे "किक", धूम 3, चैन्नई एक्सप्रेस और हाल ही में "हैप्पी न्यू यीअर" जिनका व्यापार 3 इडियट्स से ज्यादा है । उनको मैं बस यही याद दिलाना चाहूंगा कि 3 इडियट्स फिल्म रिलीज़ हुई थी 2009 दिसंबर में जबकि विश्वव्यापी मंदी छायी हुई थी । उसके बावजूद लोगों ने वह फिल्म प्रथम सप्ताह में ही कई कई बार थियेटर में टिकिट लेकर थी । मुझे याद है मैंने 3 इडियट्स मुंबई में रिलीज़ होने वाले शुक्रवार के पहले गुरूवार को विशेष शो में देखी थी । आम शो के मुकाबले टिकट महंगा था और देर रात 11 बजे से था । उसके बावजूद वह शो हाउसफुल था । और जब फिल्म खत्म हुई तो मैंने एक दर्शक को फोन पे किसीसे कहते सुना कि कल सुबह मैं ये फिल्म फिर देखूंगा । आप ही कहिये आपने भी ये फिल्म एक से ज्यादा बार देखी है कि नहीं ?

राजकुमार हिरानी को जो बात बेहतरीन निर्देशक बनाती है वो उनका बेहतरीन संपादक होना । यहां मैं बताना चाहूंगा कि राजकुमार हिरानी पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविज़न संस्थान से सन 86 में फिल्म सम्पादन में डिप्लोमा किये हुए हैं । निर्देशक बनने से पहले उन्होंने "मिशन कश्मीर" फिल्म संपादित की थी । आपको उनकी किसी भी फिल्म में कुछ भी अनावश्यक नहीं लगेगा चाहे वो सीन हो, चरित्र हो या संवाद । हर चीज़ उतनी ही है जितनी कि ज़रूरी है, न कम न ज्यादा ।

यही सब विशेषता उनकी नई फिल्म "PK " में भी है । इस फिल्म के हर पहलु पर राजकुमार हिरानी का ठप्पा लगा हुआ है । ये भी आनंद फिल्म से प्रेरित है, ऋषिकेश मुकर्जी स्कुल की फिल्मों की तरह सीधी सरल सहज है, तकनीक केवल कहानी को बेहतर बनाती है और एकदम सधी हुई फिल्म है । मेरे साथ ये फिल्म मेरे एक मित्र ने देखी जिनका व्यवसाय ऑटो चलाना है । वो ये फिल्म देख कर अभिभूत था । उसके शब्दों में फिल्म की कहानी कहीं झोल नहीं खाती है, कहीं भी बोर नहीं होते हैं । निस्संदेह इस फिल्म में आमिर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय है, पर सिनेमा को तो निर्देशक का माध्यम मानते हैं । फिल्म की हर अच्छाई - बुराई के लिये केवल वही ज़िम्मेदार है ।

लेकिन सबसे बड़ी विशेषता इस की जो है और वो राजकुमार हिरानी की हर फिल्म की होती है उसका समाज लिए संदेश । जब अधिकांश फिल्मकार मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता परोस रहे हैं उसी समय में एक फिल्मकार ऐसा है जो कि अपनी प्रत्येक फिल्म में न सिर्फ स्वस्थ मनोरंजन प्रस्तुत करता है, उसके साथ बहुत सामायिक संदेश भी देता है । और यही बात उनको और उनकी हर फिल्म को महान बना देती है ।

PK आज विश्वव्यापी धार्मिक कट्टरता, रूढ़िवाद, अंधविश्वास और असहिष्णुता को ललकारती है । इसका संदेश सीधा है कि श्रद्धा भय नहीं आस्था से उपजनी चाहिये । लेकिन हर धर्म में मौजूद उसके तथाकथित ठेकेदार और उनके द्वारा फैलाया आडंबर का मायाजाल केवल भय ही पैदा करता है । अगर हमें मानवता और अपने भविष्य की रक्षा करनी है तो हमें हर भय से मुक्त होना होगा ।

ये फिल्म इतनी बड़ी बात हमारे सामने रखती है लेकिन समूचे थियेटर में एक भी ऐसा शख़्स नहीं था जो इस बात का बुरा माना हो । उलटे सब तालियां बजा रहे थे । और तो और बाहर निकलते हुए फिल्म पुन: देखने का प्लान बना रहे थे ।

लेकिन इन सबके बावजूद मुझे लगा कि ये राजकुमार हिरानी की सभी फिल्मों में सबसे कमज़ोर फिल्म है । और उसका कारण इस फिल्म में खलनायक का न के बराबर होना है । फिल्म में पीके इतना सटीक और मजबूत पात्र है कि वो पूर्णत: अपराजेय है । उसके सामने जो तपस्वी हैं वो कभी भी पीके पर हावी नहीं पाता है । और शायद इसलिये मध्यांतर के बाद फिल्म बहुत सपाट सी लगती है और कभी कभार खिंचती हुई भी लगती है ।

लेकिन फिर भी ये एक बहुत उम्दा फिल्म है जो कि कई बार देखे जाने योग्य है । और अगर इसे देख कर कुछ लोग ही स्वयं को भयमुक्त कर सके तो वो समाज के लिए बहुत बड़ी बात होगी ।

1 comment:

Pallavi saxena said...

हम भी जा रहे हैं कल। फिर देखकर बतातें है कि हमको क्या लगा।