तो खैर मैं अपने एक दोस्त के साथ शनिवार रात फ़िल्म देखने चंदन गया. चंदन में आज भी शनिवार – इतवार के evening और night shows ke टिकीट black में बिकते हैं. और कल भी फ़िल्म houseful थी. इसका श्रेय आमिर खान और उनकी पूरी marketing team को जाता है जिनके शानदार काम के कारण एक निहायत छोटे बजट की, बिना star-cast की film जो एक ग्रामीण आदमी की कहानी है और जिसमे कहने को शायद एक भी regular film masala नहीं है, ऐसी फ़िल्म को houseful opening लगती है औरि इतना शानदार critical response मिला है.
(Contd.After a month)
आज तक यह फ़िल्म ` 35 kकरोड़ का व्यवसाय केवल हिन्दुस्तान में कर चुकी है. इस प्रकार यह इस साल की सफ़लतम फ़िल्मों में एक है. अभी इतवार को ही प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने भी यह फ़िल्म देखी और इसकी भरपूर सराहना की. मैं यह सब इस लिये बता रहा हूँ क्योंकि मैं भी यह मानता हूँ कि यह एक काबिले-तारीफ़ फ़िल्म है.
मेरे कई मित्रों को यह फ़िल्म बहुत बक़्वास भी लगी है. मेरे अनुसार उनको ऐसा इसलिये लगा क्योंकि शायद वो फ़िल्म की publicity एवं amir khan factor के चलते बहुत ज्यादा उम्मीद ले कर फ़िल्म देखने गये होंगे.
वे शायद 3-idiots उम्मीद कर रहे थे जबकि ये फ़िल्म एक सीधी सादी, सरल फ़िल्म है जिसकी 3 idiots से सिर्फ़ एक समानता है और वह है आमिर खान वह भी अभिनेता के रूप में नहीं, मगर निर्माता के रूप में. मगर यह अहम फ़र्क शायद साधारण व्यक्ति को समझ पाना मुश्किल है.
दूसरी वजह शायद है इस फ़िल्म में दिखाई गई सच्चाई जो कि बेहद क्रूर और बेबाक है. जब कभी हम किसी निर्विवाद व कठोर सच्चाई का सामना करते हैं तो या तो हम एक दम सन्न, शांत हो कर स्वीकार कर लेते हैं या फ़िर हम उस सच्चाई को एकदम से खारिज कर देना चाहते हैं क्योंकि उसे स्वीकार करना हमारे बस में नहीं है. पीपली live फ़िल्म ने हमारे इस सच को भ्रम साबित कर दिया कि “AAL ISS WELL”. जिस हिन्दुस्तान को हम आगामी महाश्क्ति मानते हैं उसकी असल स्थिति क्या है? और यकीन मानिये इसे स्वीकार करना उतना ही शर्मनाक है जितना घ्रृणित फ़िल्म के एक दृश्य में इंसानी टट्टी को पर्दे पर देख पाना.
मगर फ़िर भी मेरे लिये यह एक कालजयी फ़िल्म नहीं हैं. इसके कारणों की ही मैं यहाँ चर्चा करना चाहता हूँ.
यह फ़िल्म कभी भी इसके मुख्य पात्र नत्था और उसके परिवार की पीड़ा को ठीक से उकेर
वहीं दूसरी तरफ़ हम सामान्य media की रोज़मर्रा की जद्दोजहद, उसका उथलापन, उसका झूठा आवरण आदि, सब ठीक से समझ पाये. य़ही हाल फ़िल्म मे दिखाये गये राजनीतिज्ञ व नौकरशाही पर भी लागू होती है. उनको हम बहुत थोड़े में ही सही मगर पूर्णतः समझ पाये.
क्या इसका कारण यह है कि फ़िल्मकार अनुषा रिज़वी के लिये media, politics और bureaucracy काफ़ी देखीभाली दुनिया है, लेकिन हिन्दुस्तान के गाँव और वहाँ का ग्रामीण जीवन उनके लिये एक दूसरी दुनिया है जिससे उनका वास्ता सिर्फ़ एक सैलानी की तरह है.
अनुषा फ़िल्म में एक बेहद मार्मिक पात्र लायीं होरी महतो.
जो लोग मुंशी प्रेमचंद के किरदारों से वाकिफ़ हैं यह नाम उनको तुरंत उनके कालजयी उपन्यास गोदान की याद दिला देगा. लेकिन जो टीस मुझे गोदान के होरी के लिये होती है वह मुझे फ़िल्म के होरी के लिये नहीं होती. क्योंकि मेरे अनुसार मुझे इस होरी से जुड़ने का पर्याप्त मौका ही नहीं दिया गया. पूरी फ़िल्म में होरी सिर्फ़ ४-५ बार दिखाया जाता है. इससे पहले कि मैं इस पात्र को समझ सकूँ उसकी मृत्यु हो जाती है. उसके बारे में, उसकी जीजिविषा के बारे में हम उसकी मृत्योपरांत जानते हैं, तब वह जानकारी सिर्फ़ ऐसा प्रभाव छोड़ती है जैसा कि किसी अपरिचित की शोक सभा में गलती से पहुँचे हुए व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है. वह सिर्फ़ माहौल की नज़ाकत के अनुसार २ मिनिट का शोक रख लेता है, जबकि वह इस मौत से बिलकुल अप्रभावित है. मेरे अनुसार फ़िल्म में होरी की मौत एक बहुत बड़ा ह्दय-विदारक क्षण था, मगर वह मुझ तक नहीं पहुँचा.
देस मेरा को फ़िर भी फ़िल्म में ठीक तरह से पेश किया गया है, मगर शेष तीनों गाने फ़िल्म में बर्बाद हो गये.
चोला माटी की तो और ज़्यादा मट्टी पलित हुई. यह गाना हमे जीवन की क्षण भंगुरता का अहसास कराता है. हमें व्यक्तिगत अहं व भेद-भाव से उपर उठ कर अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देता है. लेकिन फ़िल्म में जिस तरह से इसका उपयोग हुआ है, हम इसके प्रभाव से पूर्णतः अछूते रह जाते हैं. मुझे तो यह भी याद नहीं कि ये गाना फ़िल्म में आता कहाँ हैं. शायद फ़िल्म के अंत में. अगर यही गाना फ़िल्म में तब आता जब कि होरी का मृत शरीर उसके ही द्वारा खोदे गये गड्डे में मिलता है. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यहा गाना दर्शकों की आत्मा तक को झंझोड़ देता था.
2 comments:
A very wonderful effort. Deep thinking and a wonderful wrting style
bahut accha likha hain
आप ने जो कहा उससे मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूँ कि फिल्म बहुत ही बढ़िया है यह मैं नहीं मानती, ठीक है ऐसा कहा जा सकता है जैसा कि आप ने कहा है कि यह एक बहुत ही साधारण फिल्म है तो एक साधारण या यूँ कहिये कि एक आम आदमी को क्या फ़र्क पड़ेगा क्या आप को लगता है की इस फिल्म के माद्धियम से जो बात एक आम आदमी तक पहुँचाने की कोशिश की गयी है वो पूरी हुई है क्यूँकि जितना दिखाया गया है एक आम आदमी की हालत को वो ना तो पूरी तरह कम है न ही पूरी तरह ज्यादा है इससे ज्यादा एक फिल्म मैं दिखाया भी नहीं जा सकता है मगर मेरी समझ से फिल्म का मकसद तो तब पूरा होगा जब इस फिल्म से किसी को कोई फ़र्क पड़े और एक आम आदमी की ज़िन्दगी मैं कुछ सुधार आये और ये सुधार कैसे आएगा
या कोन लायेगा ये आज कोई नहीं जानता न ही जान सकता है क्यूँकि कुछ बातें ऐसी होती हैं जो कहना बहुत आसान होता है मगर उन बातों का सही होना या हो पाना उतना ही मुश्किल है. आज हमारे देश में जिसको देखो कहने में लगा है कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है उसके कारण आज हमारे देश की यह हालत है जो काफी हद तक इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है तो क्या इस फिल्म में जो दिखाना चाहा है उससे हमारे देश के नेताओं पर किसी तरह का कोई फ़र्क पड़ेगा. मुझे तो ऐसा ज़रा भी नहीं लगता, हर कोई बस दूसरी आम फिल्मो की तरह इस फिल्म को देख कर भी २-४ मिनट इस पर बात करेगा और चला जाएगा. कुछ लोग कहेंगे फिल्म बहुत अच्छी थी, कुछ कहंगे बहुत ही बकवास थी, आमिरखान की फिल्म से हमें ये उम्मीद नहीं थी, मगर इस फिल्म को क्या सोच कर बंनाया गया क्या बात लोगों तक पहुँचाने की कोशिश की गई है, बहुत ही कम लोगों के समझ में आया होगा. फिर चाहे वो Multiplex Theatre मैं बेठा एक middle क्लास आदमी हो या साधारण सिनेमा में बेठा कोई आम आदमी इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा, फिल्म के दुआरा कही जाने वाली बात पर तो मेरे हिसाब से जो मेरी प्रतिक्रिया आई वो यही थी की बस इस फिल्म को भी बाकी और दूसरी फिल्मों की तरह दिमाग से देखो और सोचो कुछ भी नहीं क्यूँ की जिन लोगों पर इस फिल्म का असर होना चाहिए उनके कानो पर तो जूं भी नहीं रेंगेगी और रही बात आम जनता की तो वो भी बस देख कर इतना ही कहेंगे हाँ सही दिखाया गया है बिलकुल सच है ये. मगर करेगा कोई कुछ नहीं, सब बस हमेशा के तरह फिल्म देखकर चार बातें बोलेंगे और फिर भूल जायेगे के ऐसे कोई फिल्म आई भी थी कभी .... और सच बात तो यह है कि फिल्म चली भी सिर्फ आमिरखान के नाम पर और वो गीत महंगाई डायन खाई जात है ....वर्ना कुछ भी नहीं है फिल्म मैं जिसको देखकर दर्शक फिल्म का लुफ्फ़ उठा सकें.
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