कल जब मैं एवेंजर देख कर निकल तो माथा घुमा
हुआ था | इस फिल्म में कई सारे सुपर हीरो हैं और वो सब मिल कर एक बड़े विलेन
अल्ट्रोन का सामना करते हैं | कहने को तो अल्ट्रोन एक था लेकिन वो अपने असंख्य
अवतार बना लेता है और वो सब हमारे हीरो से लड़ते हैं | तो आलम ये है कि एक बड़ी भीड़
आपस में लड़ रही है, कब कौन किसको मार रहा है, कब कौन मर रहा है, समझ ही नहीं आता
है | वो तो जब आखिर में सारे सुपर हीरो जिंदा दिखते हैं तो समझ आता है कि कौन मरा
है ?
चलिए मान लेता हूँ कि मैं इस फिल्म को समझने
में कुछ धीमा रहा हूँ, लेकिन जैसे-जैसे मैं इस फिल्म पर विचार कर रहा हूँ, पा रहा
हूँ कि मुझे ये फिल्म बिलकुल नहीं भायी है | मैं अपने कारण आप सबको बताता हूँ|
अगर आपने इस श्रंखला की पिछली फ़िल्में देखी हैं जिनमें मुख्यत: Iron Man Series, Captain America Series, Thor और Avenger 1 हैं तो इस फिल्म में आप कुछ ऐसा नया नहीं पायेंगे | और एक जरूरी बात इस फिल्म को समझने के लिए आपको यहाँ बताई सभी फ़िल्में देखना ज़रूरी है, नहीं तो आपके कुछ भी पल्ले नहीं पड़ेगा | तो हो गयी न लौट के बुद्धू घर को आये वाली बात | पहले तो ये सभी फ़िल्में देखो और जब उनको देख इस नई फिल्म को देखने जाओ तो अपने आपको ठगा हुआ पाओ | लाहौल-बिला-कुवत!
माना कि इस तरह की सभी फ़िल्में Cinema of journey अर्थात यात्रा का सिनेमा है | मतलब हमें शुरू में ही पता है कि अंत क्या होने वाला है | हम तो सिर्फ वो कैसे होगा; ये जानने के लिए ये सिनेमा देख रहें हैं | इस श्रेणी में अधिकांश पापुलर फ़िल्में आती हैं | इस फिल्म के किसी भी दर्शक ने ये नहीं सोचा होगा कि इस फिल्म में कोई भी एवेंजर की मृत्यु होगी, क्योंकि वो हो ही नहीं सकती आखिर वो सुपर हीरो जो ठहरे | ये भी शायद हरेक को अंदाज़ा था कि पुन: समूची मानव जाति पर कोई खतरा मंडराएगा और एवेंजर उस खतरे से निबट लेंगे | तो फिर भी लोग इस फिल्म को देखने क्यूँ जाते हैं ?
क्योंकि समूची मानव जाति बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानियों का खजाना है | हमारे पुराण, धार्मिक ग्रन्थ जैसे महाभारत, रामायण, बाईबल इत्यादि सबमें अधिकांशत: एक मामूली सा हीरो एक महाशक्तिशाली विलेन का सामना कर उसे पराजित करता है | पिछली सभी फिल्मों में जो केवल यही हुआ था| लेकिन उन सभी फिल्मों में एक नयापन था, कहानी का, चरित्रों का, फिल्मांक्स का, स्पेशल इफेक्ट्स का आदि आदि का, जो न सिर्फ दर्शकों को आखिर तक बंधे रखा, उनको फिल्म पुन: देखने पर मजबूर भी किया| अफ़सोस मगर इस फिल्म में कुछ भी नया नहीं लगा |
यहाँ मैं आप सबका ध्यान एक लेख की ओर लाना चाहूँगा जो कि श्री जयप्रकाश चौकसे जी ने दैनिक भास्कर अखबार में लिखा है | चौकसे जी इंदौर के बड़े पुराने और मशहूर फिल्म वितरक हैं | साथ साथ वे बड़े उम्दा लेखक और फिल्म निर्माता भी हैं | उनका यह कालम दैनिक भास्कर अखबार में पिछले कई वर्षों से छप रहा है | उनके जो लेख मैं आप सबको पढ़ाना चाहता हूँ उसका लिंक नीचे है :
अवेंजर फिल्म के इस विवेचन के द्वारा मैं आप
सबका ध्यान उस बड़ी बात जो कि चौकसे जी ने बहुत सटीक रूप से कही है, पर लाना
चाहूँगा | मुझे पूरा यकीन है कि चौकसे जी की बात से आप सब भी सहमत होंगे | आज के
इस तकनीकी युग में हर चीज़ पर तकनीक हावी होते जा रही है | यह जरूरी है कि हम उसे
अपने जज्बातों, अपने ख्यालों पर हावी न होने दें | कहानी, कविता, अभिव्यक्ति आदि
का स्थान अब तक तो तकनीक से श्रेष्ठ रहा है और आइये हम दुआ करें कि आगे भी रहेगा |
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